Chanakya Neeti 07 ( चाणक्य नीति 07 )


140.
 विद्वान व्यक्ति को चाहिए कि 
वह अपने धन के नष्ट होने , 
दिल के दर्द , 
और घर के दोष ,
किसी व्यक्ति द्वारा ठगे जाने , 
और अपना अपमान होने की बात।
किसी पर भी प्रकाशित न करें यथार्थ किसी को भी ना बताएं।।



141.
धन - धन्या  के लेन - देन में ,
विद्या अथवा किसी हुनर को सीखने में ,
भोजन के समय,
अथवा व्यवहार में संकोच ना करने वाला 
व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है।


142.
अपनी पत्नी, भोजन और धन
इन तीनों के प्रति मनुष्य को संतोषी होना चाहिए।। लेकिन 
विद्या के अध्ययन, तप और दान 
इन तीनों के प्रति हमेशा असंतोषी होना चाहिए।।


143.
दो ब्राह्मणों के मध्य से,
ब्राह्मण और अग्नि के मध्य से,
पति और पत्नी के मध्य से ,
स्वामी तथा सेवक के मध्य से 
तथा हल और बैल के मध्य से ,
नहीं निकलना चाहिए ।।


144.
अग्नि,  गुरु,  ब्राह्मण,  गाय,  कुंवारी कन्या,  बुड्ढा आदमी और छोटे बच्चे 
इन सब को पैर से कभी नहीं स्पर्श करना चाहिए।।


145.
बैलगाड़ी आदि से पांच हाथ,
घोड़े से 10 हाथ तथा 
हाथी से 100 हाथ 
दूर रहने में ही मनुष्य की भलाई है ।
दुष्ट आदमी से बचने हेतु स्थान का त्याग भी किया जा सकता है।।


146.
हाथी को अंकुश से ,
घोड़े को चाबुक से ,
बैल आदि सिंग वाले पशुओं को डंडा मारकर बस में किया जाता है ।
लेकिन दुष्ट व्यक्ति को वश में करने के लिए तलवार ही उठानी पड़ती है ।


147.
ब्राह्मण भोजन से तृप्त हो जाता है।
मोर बादलों के गरजने पर प्रसन्न होता है।
 सज्जन आदमी दूसरे को संपन्न और सुखी देखकर प्रसन्न होते हैं। 
लेकिन दुष्ट व्यक्ति दूसरों को विपत्ति में घिरा देखकर प्रसन्न होता है।।


148.
बलवान शत्रु को उसके अनुकूल व्यवहार,
दुष्ट शत्रु को  जैसे को तैसा व्यवहार करके,
तथा अपने समान बल वाले शत्रु को विनय अथवा बल से वश में करें ।।


149.
राजा का बल भुजाओं में है।
ब्राह्मण का बल उसका ज्ञान है 
तथा स्त्रियों का बल उनका सौंदर्य, यौवन तथा माधुर्य होता है।।


150.
मनुष्य को अत्यंत सरल और सीधा भी नहीं होना चाहिए।
चाणक्य का कहना है कि वन में जाकर देखो सीधे वृक्ष काट दिए जाते हैं और टेढ़ी-मेढ़ी वृक्ष खड़े रहते हैं।।


151.
जहां जल रहता है वहां हंस रहते हैं ,
और जब जल सूख जाता है, 
तो वह उस स्थान को छोड़ देते हैं।।
लेकिन मनुष्य को हंस की भांति नहीं होना चाहिए क्योंकि वह यदि हंस की भांति व्यवहार करेगा तो उसे एक बार  जिस का त्याग करना पड़ेगा फिर उसका आश्रय भी लेना पड़ सकता है।।


152.
अर्जित अथवा कमाए हुए धन का त्याग करना ही उसकी रक्षा है।
जिस तरह तलाब में भरे हुए जल को निकालते रहने से ही उस तालाब का पानी शुद्ध और पवित्र होता है।।


153.
जिस व्यक्ति के पास धन है उसके सब मित्र होते हैं, उसी के सब भाई बंधु और पारिवारिक जन होते हैं ।। धनवान व्यक्ति को ही श्रेष्ठ माना जाता है इस तरह वह आदर पूर्वक अपना जीवन बिताता है।।


154.
स्वर्ग से इस भूलोक में अवतरित होने वाले दिव्य पुरुषों में  चार मुख्य गुण होते हैं ।
उसमें दान देने की प्रवृत्ति होती है 
वह वाणी से मधुर भाषी होता है
देवताओं की पूजा अर्चना करता है उनका आदर सत्कार करता है।।


155.
इसी तरह नर्क में रहने वाले जब देह धारण कर इस संसार में आते हैं तो 
मधुर भाषी होने के बजाय अत्यंत क्रोधी स्वभाव के होते हैं ,
कड़वी बातें कहते हैं , वह निर्धन होते हैं ,
वह कुत्तों की भांति अपने व्यक्तियों से देश भाव रखते हैं ,
नीच लोगों की भांति  रहते हैं और वे नीच कुल वालों की सेवा करते हैं।।


156.
यदि कोई मनुष्य सिंह की गुफा में पहुंच जाए तो,
संभव है कि वहां उसे हाथी के मस्तक का मोती प्राप्त हो जाए ।।
लेकिन यदि कोई गीदड़ की गुफा में जाए तो वहां उसे किसी बछड़े की पूछ का टुकड़ा अथवा गधे की खाल का टुकड़ा ही प्राप्त होगा।।



157.
वाणी की पवित्रता ,  मन की शुद्धि ,  इंद्रियों का संयम ,  प्राणी मात्र पर दया ,  धन की पवित्रता 
मोक्ष प्राप्त करने वाले के लक्षण होते हैं।।


158.
जैसे फूल में सुगंध होती है, 
तिलों में तेल होता है सूखी लकड़ी में अग्नि होती है, दूध में घी और ईख में गुड़ तथा मिठास होती है।
वैसे ही शरीर में आत्मा और परमात्मा विद्यमान है। इस तथ्य को व्यक्ति विवेक द्वारा ही समझ सकता है।।


159.
विद्या के बिना मनुष्य का जीवन कुत्ते की उस पूछ के समान है 
जिससे ना तो अपने शरीर के गुप्त भावों को ढक सकता है 
और ना ही काटने वाले मच्छरों आदी को उड़ा सकता है।।

160. जैसे फूल में सुगंध होती है, तिलों में तेल होता है। सूखी लकड़ी में अग्नि होती है। दूध में घी और ikh में गुड़ तथा मिठास होती है। वैसे ही शरीर में आत्मा और परमात्मा विद्यमान है |  इस तथ्य को व्यक्ति, विवेक द्वारा ही समझ सकता है।