Chanakya Neeti 06 ( चाणक्य नीति 06 )

चाणक्य नीति 06


119.
मनुष्य वेद आदि शास्त्रों को सुनकर धर्म के तत्व और रहस्य को जान लेता है।
विद्वानों की बात सुनकर दुष्ट आदमी बुरे ढंग से सोचने की बात को छोड़ देता है ।
गुरु से ज्ञान को सुनकर मनुष्य संसार के बंधन से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है।



120.
पक्षियों में सबसे ज्यादा दुष्ट कौआ होता है।
पशुओं में कुत्ता होते है।
मनुष्य में क्रोध करने वाला और सामान्य जन में दूसरे लोगों की निंदा करने वाला व्यक्ति दुष्ट और चांडाल होता है।



121.
कांसे का बर्तन राख से मांजने पर शुद्ध होता है ।
तांबे को खटाई से शुद्ध किया जाता है और स्त्री रजस्वला होने के बाद ही पवित्र होती है ।
इसी तरह नदी जब तीव्र वेग से बहती है तब उसका जल शुद्ध होता है।


122.
भ्रमण करने वाला राजा अपनी प्रजा में सम्मान पाता है ।
भ्रमण करने वाला ब्राह्मण आदर व सम्मान पाता है। भ्रमण करने से योगी सम्मान पाता है और भ्रमण करने वाली स्त्री का विनाश हो जाता है।


123.
मनुष्य जैसा भाग्य लेकर पैदा होता है उसकी बुद्धि उसी के अनुसार विचरित होती है और वह व्यवसाय अथवा काम धंधा भी वैसा ही चुनता है तथा उसकी मदद करने वाले भी उसी तरह के होते हैं।


124.
काले अर्थात समय, सब प्राणियों को निगल जाता है काल ही सब का नाश करता है।
काल सदा जागता रहता है वह सुप्त नहीं होता ।
काल ही अवहेलना नहीं की जा सकती ।
व्यक्ति जन्म लेता है, बड़ा होता है, जवान होता है, वृद्धावस्था को प्राप्त करके मृत्यु को प्राप्त होता है ।
यह सब काल के अधीन है ।
हम सोचे कि काल की गति को रोक लें,  यह तो संभव है।


125.
जन्म से अंधे व्यक्ति को दिखाई नहीं देता लेकिन कमान व्यक्ति को कुछ भी दिखाई नहीं देता ।
इसी तरह शराब आदि के नशे में मस्त व्यक्ति को भी भले बुरे का कोई ज्ञान नहीं होता ।
स्वार्थी व्यक्ति भी बुराइयों को नहीं देखता उसके मन में मात्र अपना स्वार्थ सिद्ध करने की बात होती है।


126.
व्यक्ति स्वयं कार्य करता है और उसका फल भी स्वयं भोक्ता है और वह स्वयं ही विभिन्न योनियों में जन्म लेकर संसार में भ्रमण करता है और स्वयं ही अपने पुरुषार्थ में विश्व के बंधनों और आवागमन के चक्र से छूटकर मुक्ति को प्राप्त होता है।



127.
राजा को राष्ट्र के पापों का फल भोगना पड़ता है।
राजा के पाप पुरोहित भोक्ता है। 
पत्नी के पाप उसके पति को भोगने पड़ते हैं ।
इसी तरह शिष्य के द्वारा किए गए पाप गुरु को भोगने पड़ते हैं।


128.
जो पिता अपनी संतान पर ऋण छोड़ जाता है वह बच्चों का शत्रु होता है ।
बुरे आचरण वाली माता भी शत्रु होती है ।
सुंदर पत्नी भी शत्रु होती है और मूर्ख पुत्र भी शत्रु होता है।


129.
लोभी व्यक्ति को धन देकर ।
अभिमानी व्यक्ति को हाथ जोड़कर ।
मूर्ख को उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करके । विद्वान मनुष्य को सच्ची बात बता कर ।
वश में करने की कोशिश करनी चाहिए ।।


130.
बुरे राज्य की बजाय किसी प्रकार का राज ना होना भला है ।
दुष्ट मित्रों की बजाय मित्र ना होना भला है ।
दुष्ट शिष्यों के बजाय शिष्यों न होना ज्यादा भला है। और दुष्ट पत्नी का पति कहलाने की बजाय पत्नी का ना होना बढ़िया है।


131. 
दुष्ट राजा के शासन में प्रजा को सुख नहीं मिल सकता।
धोखेबाज मित्र से आनंद नहीं मिल सकता ।
दुष्ट स्त्री को पत्नी बनाने से घर में सुख और शांति नहीं रह सकती ।
इसी प्रकार खोटे शिष्य को विद्या दान देने वाला गुरु को भी यश नहीं मिल सकता।


132.
प्राणी में कोई न कोई गुण जरूर होता है। 
चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को शेर और बगुले से एक-एक गुण सीखना चाहिए ।
मुर्गे से 4 गुण सीखे जा सकते हैं ।
कौवे से 5 गुण,
कुत्ते से 6 गुण 
और गधे से 3 गुण 
सीखे जा सकते हैं।।



133.
मनुष्य जो भी छोटा या बड़ा कार्य करता है उसे उसमें प्रारंभ से पूरी शक्ति लगाकर कार्य करना चाहिए ।
यह शिक्षा हम सिंह से ले सकते हैं।



134.
बुद्धिमान व्यक्ति को अपने इंद्रियां वश में करके।
समय के अनुरूप बगुले के समान अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए।



135.
समय पर उठना,
युद्ध है तो हमेशा तैयार रहना,
अपने बंधुओं को उनका उचित हिस्सा देना 
और स्वयं आक्रमण करके भोजन करना मनुष्य को ये 4 बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए।


136.
छिपकर मैथुन करना।
ढीठ होना ।
समय-समय पर कुछ वस्तुएं इकट्ठी करना ।
निरंतर सावधान रहना 
और किसी दूसरे पर पूरी तरह विश्वास नहीं करना। यह पांच बातें कौवे से सीख लेनी चाहिए।।


137.
कुत्ते की यह विशेषता होती है 
कि जब उसे खाने को मिलता है तो बहुत अधिक खाता है ,
और उसे खाने को नहीं मिलता है तो भी वह संतुष्ट रहता है ।।
वह अच्छी गहरी नींद लेता है,
परंतु थोड़ी सी आहट होने पर एकदम जाग जाता है।। वह स्वामी भक्त होता है ,
स्वामी के प्रति वफादारी रखता है और लड़ने में जरा भी नहीं घबराता।।



138.
व्यक्ति को गधे से तीन बातें सीख लेनी चाहिए 
अपने मालिक हेतु काफी थका हुआ होने पर ही बोझ ढोता रहता है ।
सर्दी गर्मी की चिंता किए बगैर सदा संतोष से अपना जीवन व्यतीत करता है।।



139.
जो मनुष्य इन 20 गुणों को सीख लेता है 
यथार्थ इन्हें अपने आचरण में ले आता है ।
उनको अपने जीवन में धारण कर लेता है 
तो वह सब कार्यों और अवस्थाओं में विजयी होता है।।

The End
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