Chanakya niti 12
230.
उसी का घर सुखी हो सकता है :-
जिस के पुत्र और पुत्री या अच्छी बुद्धि से युक्त हो,
जिसकी पत्नी मृदुभाषी हो,
जिसके पास ईमानदारी से पैदा किया हुआ धन हो,
अच्छे मित्र हैं तथा अपने पत्नी के प्रति प्रेम और अनुराग हो,
आज्ञा का पालन करने वाला नौकर चाकर हो,
घर में अतिथियों का आदर सम्मान होता हो,
कल्याणकारी परमेश्वर की उपासना होती हो,
प्रतिदिन अच्छे मीठे भोजन और मधुर जल की व्यवस्था होती हो।
231.
अपने बंधु - बांधव के साथ वही व्यक्ति सुख से रह सकता है जो उनके साथ सज्जनता व नम्रता का व्यवहार रखता है।
दूसरे लोगों पर दया और दुष्ट के प्रति जैसा को तैसा व्यवहार करता हो।
232.
सज्जन लोगों से जो प्रेम रखता हो
दुष्ट के प्रति कठोरता पूर्ण व्यवहार रखता हो
विद्वान लोगों के साथ सरलता से पेश आता हो
शक्तिशाली लोगों के साथ शूरवीरता से काम लेता हो।
ऐसे व्यक्ति ही इस संसार के लायक हैं।
233
गुरु, माता - पिता और आचार्य के प्रति जो सहनशीलता पूर्ण व्यवहार रखता हो
स्त्रियों के प्रति ज्यादा विश्वास ना करके उनके प्रति चतुराई पूर्ण व्यवहार रखता हो
ऐसे व्यक्ति ही इस संसार के लायक हैं।
234
जिसने जीवन में कभी दान ना किया हो
वेद और ज्ञान की बातों को कभी सुना ना हो
आपने नेत्रों से सज्जन पुरुषों के दर्शन नहीं किए हो
माता - पिता तथा गुरु की सेवा न किया हो
गलत तरीके से धन इकट्ठा किया हो
ऐसे व्यक्ति को चाणक्य ने नीच पुरुष कहा है।
235
यदि वसंत ऋतु में करील नामक पौधे पर पत्ते नहीं निकलते तो इसमें बसंत ऋतु का क्या दोष है?
यदि उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता तो इसमें सूर्य का क्या दोष है?
यदि जातक की सोच में वर्षा का पानी नहीं टपकता तो इसमें बादल का क्या दोष है?
यथार्थ कुछ चीजें पूर्व निर्धारित होती है उसे आप बदल नहीं सकते।
236
सज्जन लोगों के सत्संग से दुर्जन मनुष्य भी सज्जन हो सकता है।
लेकिन दुष्ट साथ रहने पर सज्जन पुरुषों में दुष्टता नहीं आती।
जैसे फूल से उत्पन्न होने वाली सुगंध मिटी में तो आ जाती है परंतु मिटी की गंध फुल में नहीं आ पाती।
237
सज्जन पुरुष के दर्शन से पुण्य प्राप्त होता है।
तीर्थ तो अपने समय के अनुसार ही फल देता है लेकिन सज्जन पुरुषों का सत्संग करने से जल्द ही मन की आशाएं पूरी हो जाती है।
238
जिन घरों में ब्राह्मण ने अपने पांव ना रखे हो
जहां वेद आदि शास्त्रों के पाठ ना होते हैं
जिस घर में स्वाहा की ध्वनि ना गूंजी हो
वह घर शमशान भूमि की तरह होती हैं।।
239
सत्य मेरी माता है और ज्ञान मेरा पिता है,
धर्म मेरा भाई है तथा दया मेरी बहन है
शांति मेरी पत्नी है तथा क्षमा मेरा पुत्र है
यही 6 मेरे बंधु बांधव है।
240
यह शरीर नाशवान है
धन-संपत्ति हमेशा किसी के पास स्थित नहीं रहती
मृत्यु सदैव प्रत्येक के पास रहती है।
अतः व्यक्ति को धर्म आचरण करना चाहिए।
241
किसी ब्राह्मण के लिए भोजन का निमंत्रण मिलना है उत्सव है।
गाय के लिए ताजी घास प्राप्त होना ही उत्सव की भांति है।
पति में उत्साह की वृद्धि होते रहना ही स्त्रियों के लिए उत्सव है।
चाणक्य कहते हैं कि मेरे लिए तो भयंकर मारकाट वाला संग्राम ही उत्सव है।
242
जो व्यक्ति दूसरी स्त्रियों को माता के समान दिखता हो
दूसरों के धन को नीति के भांति समझते हो
और संसार के सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के तरह देखता हो
वास्तव में ऐसे ही व्यक्ति श्रेष्ठ और उत्तम होते हैं।
243
धर्म में निरंतर लगे रहना,
मुख से मीठी वचन बोलना ,
दान देने में सदैव उत्सुक रहना ,
मित्र के प्रति कोई भेदभाव ना रखना ,
गुरु के प्रति नम्रता रखना
आदि ही मनुष्य का लक्षण होना चाहिए।
244
अपने हृदय में गंभीरता,
अपने आचरण में पवित्रता,
गुणों के ग्रहण करने में रुचि रखना,
शास्त्रों का विशेष ज्ञान रखना,
रूप में सौंदर्य और प्रभु में भक्ति
आदि का होना सज्जन पुरुष का लक्षण है।
245
राज पुत्रों से नम्रता एवं सुशीलता
पंडित व विद्वानों से उत्तम एवं प्रिय वचन बोलना
जुआरियों से झूठ बोलना
तथा स्त्रियों से छल करना सीखना चाहिए।
246
जो व्यक्ति निर्बल होने पर भी लड़ाई झगड़े में रुचि रखता है।
बिना सोच विचार किए, बिना देखे, अपने से ज्यादा खर्च करता है।
सभी वर्णों की स्त्रियों से संभोग करने के लिए उतावला रखता है।
ऐसे मनुष्य जल्द ही नष्ट हो जाता है।।
247
बुद्धिमान मनुष्य को भोजन प्राप्ति के संबंध में चिंता नहीं करनी चाहिए।
उसे केवल धर्म - कर्म के संबंध में चिंतन करना चाहिए क्योंकि मनुष्य के जन्म के समय ही उसके भोजन का प्रबंध हो जाता है।
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जैसे जल की एक-एक बूंद गिरने से धीरे-धीरे घड़ा भर जाता है ।
उसी प्रकार थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करते रहने से धन, विद्या और धर्म की प्राप्ति होती है।
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जो व्यक्ति दुष्ट है वह परिपक्व है होने पर भी दुष्टता नहीं छोड़ता।
जैसे इंद्रायण का फल पक जाने पर भी मीठा नहीं होता।