Chanakya niti 11

215.
मनुष्य में चार बातें प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं।
दान देने की इच्छा , 
मधुर भाषण 
सहनशीलता तथा 
उचित अथवा अनुचित का ज्ञान 
ये 4 बातें संसार में सहज - स्वभाव से ही होती है अभ्यास से चारों गुण प्राप्त नहीं किए जा सकते।।



 216
जो मनुष्य अपने वर्ग के लोगों को छोड़कर दूसरों के वर्ग का आश्रय लेता है 
वह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे दूसरे के धर्म का आश्रय लेने वाला राजा।



217
लंबे चौड़े डीलडोल वाला हाथी अंकुश से बस में होता है
एक मामूली दीपक अंधकार का नाश कर देता है
तथा विशाल पर्वत वज्र के प्रहार से चूर चूर हो जाता है।
क्या अंकुश हाथी के समान डील डौल वाला होता है ? क्या दीपक अंधकार के भारतीय विस्तृत होता है ?
या  वज्र पर्वत जैसा होता है ?
वस्तुतः तेजवान ही बलवान है।
आकार अथवा विस्तार से कोई बलवान नहीं हो जाता।




218
कलयुग के 10,000  वर्ष समाप्त होने के बाद सर्व व्यापक परमात्मा पृथ्वी का त्याग देंगे।
5,000 वर्ष व्यतीत होने पर गंगा का जल पृथ्वी को छोड़ देगा।
2,500 व्यतीत होने पर गांव का देवता गांव को त्याग देगा।


219
जिस व्यक्ति के घर में अधिक मुंह और लगाव है उसे विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती।
जो लोग मांस खाते हैं उनमें दया नहीं
और जो धन के प्रति लोग की भावना रहते हैं उनमें सत्य नहीं होता
और दुराचारी , व्यभिचारी , भोगविलास में लगे रहने वाले मनुष्य में पवित्रता का अभाव रहता है।



220
जिस प्रकार नीम के वृक्ष को दूध और घी से सींचने पर भी उसमें मिठास पैदा नहीं होती 
उसी प्रकार यह भी बात सत्य है कि दुर्जन व्यक्ति को अनेक प्रकार से समझाने और सिखाने पर भी उसमें सज्जनता का विकास नहीं होता।



221
जिस व्यक्ति का मन दुष्टता , कामवासना आदि मलो से भरा हुआ है , ये मनुष्य आदि सैकड़ों बार भी तीर्थ स्नान करें तो भी वह पवित्र नहीं हो सकता।
जिस प्रकार मदिरा का बर्तन आप पर जलाने से भी शुद्ध नहीं हो सकता।


222
जिस व्यक्ति को किसी के गुणों की श्रेष्ठा का ज्ञान नहीं है वह हमेशा ही उनकी निंदा करता रहता है।
ऐसा करके व्यक्ति अपना ही नुकसान करता है।


223
जो व्यक्ति वर्ष भर मौन रहकर चुपचाप भोजन ग्रहण करता है वह एक करोड़ वर्ष तक स्वर्ग में आदर सम्मान का हकदार होता है।
यथार्थ ऐसे व्यक्ति से देवी देवता प्रसन्न रहते हैं।



224
विद्यार्थी हेतु जरूरी है कि वह इन 8 बातों का त्याग कर दे  :-
काम,  क्रोध, लोभ , 
श्रृंगार, खेल तमाशे,
स्वादिष्ट पदार्थों की इच्छा ,
अधिक सोना और चापलूसी करना।



225
एक समय भोजन करने से शरीर स्वस्थ और मन पवित्र रहता है।
और जो नित्य अपने कर्तव्य पूरा करता रहता है 
और स्त्री का संग मात्र संतान की उत्पत्ति करने हेतु करता है, उपभोग हेतु नही।
ऐसे ही ब्राह्मण द्विज कहलाता है।


226
जो व्यक्ति हमेशा सांसारिक कार्य में लगा रहता है 
और पशुओं का पालन करता रहता है 
व्यापार और खेती आदि करता है 
तो उस ब्राम्हण को वश्य कहा जाता है।।


227
जो ब्राह्मण वृक्षों की लाख, तेल, कपड़े, रंग, शराब मांस , घी आदि चीजों का व्यापार करता है 
उस ब्राह्मण को शुद्र कहते हैं।



228
जो दूसरों के कार्य को बिगाड़ता है 
अपने ही स्वार्थ सिद्ध करने में लगा रहता है 
दूसरों को धोखा देता है 
ढोंग करता है  और दूसरों से द्वेष रखता है 
ऊपर से देखने में अत्यंत नम्र और अंदर से दुष्ट
ऐसे ब्राह्मण को भी पशु कहा गया है।।



229
जो ब्राम्हण पानी के स्थानों,
बावड़ी,  कुआं,  तालाब , 
बाग बगीचों और मंदिरों को तोड़फोड़ करने में किसी प्रकार का भय ना अनुभव करता हो 
वो मल के समान होता है।




230
आचार्य चाणक्य के अनुसार सज्जन व्यक्तियों का धन सदा दान करने हेतु ही होता है। वह कभी उसका संचय नहीं करते 
क्योंकि दान देने की वजह से ही दानवीर कर्ण, महाराजा बलि और विक्रमादित्य का यश आज भी संपूर्ण संसार में फैला हुआ है।