मनुष्य में चार बातें प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं।
दान देने की इच्छा ,
मधुर भाषण
सहनशीलता तथा
उचित अथवा अनुचित का ज्ञान
ये 4 बातें संसार में सहज - स्वभाव से ही होती है अभ्यास से चारों गुण प्राप्त नहीं किए जा सकते।।
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जो मनुष्य अपने वर्ग के लोगों को छोड़कर दूसरों के वर्ग का आश्रय लेता है
वह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे दूसरे के धर्म का आश्रय लेने वाला राजा।
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लंबे चौड़े डीलडोल वाला हाथी अंकुश से बस में होता है
एक मामूली दीपक अंधकार का नाश कर देता है
तथा विशाल पर्वत वज्र के प्रहार से चूर चूर हो जाता है।
क्या अंकुश हाथी के समान डील डौल वाला होता है ? क्या दीपक अंधकार के भारतीय विस्तृत होता है ?
या वज्र पर्वत जैसा होता है ?
वस्तुतः तेजवान ही बलवान है।
आकार अथवा विस्तार से कोई बलवान नहीं हो जाता।
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कलयुग के 10,000 वर्ष समाप्त होने के बाद सर्व व्यापक परमात्मा पृथ्वी का त्याग देंगे।
5,000 वर्ष व्यतीत होने पर गंगा का जल पृथ्वी को छोड़ देगा।
2,500 व्यतीत होने पर गांव का देवता गांव को त्याग देगा।
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जिस व्यक्ति के घर में अधिक मुंह और लगाव है उसे विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती।
जो लोग मांस खाते हैं उनमें दया नहीं
और जो धन के प्रति लोग की भावना रहते हैं उनमें सत्य नहीं होता
और दुराचारी , व्यभिचारी , भोगविलास में लगे रहने वाले मनुष्य में पवित्रता का अभाव रहता है।
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जिस प्रकार नीम के वृक्ष को दूध और घी से सींचने पर भी उसमें मिठास पैदा नहीं होती
उसी प्रकार यह भी बात सत्य है कि दुर्जन व्यक्ति को अनेक प्रकार से समझाने और सिखाने पर भी उसमें सज्जनता का विकास नहीं होता।
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जिस व्यक्ति का मन दुष्टता , कामवासना आदि मलो से भरा हुआ है , ये मनुष्य आदि सैकड़ों बार भी तीर्थ स्नान करें तो भी वह पवित्र नहीं हो सकता।
जिस प्रकार मदिरा का बर्तन आप पर जलाने से भी शुद्ध नहीं हो सकता।
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जिस व्यक्ति को किसी के गुणों की श्रेष्ठा का ज्ञान नहीं है वह हमेशा ही उनकी निंदा करता रहता है।
ऐसा करके व्यक्ति अपना ही नुकसान करता है।
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जो व्यक्ति वर्ष भर मौन रहकर चुपचाप भोजन ग्रहण करता है वह एक करोड़ वर्ष तक स्वर्ग में आदर सम्मान का हकदार होता है।
यथार्थ ऐसे व्यक्ति से देवी देवता प्रसन्न रहते हैं।
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विद्यार्थी हेतु जरूरी है कि वह इन 8 बातों का त्याग कर दे :-
काम, क्रोध, लोभ ,
श्रृंगार, खेल तमाशे,
स्वादिष्ट पदार्थों की इच्छा ,
अधिक सोना और चापलूसी करना।
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एक समय भोजन करने से शरीर स्वस्थ और मन पवित्र रहता है।
और जो नित्य अपने कर्तव्य पूरा करता रहता है
और स्त्री का संग मात्र संतान की उत्पत्ति करने हेतु करता है, उपभोग हेतु नही।
ऐसे ही ब्राह्मण द्विज कहलाता है।
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जो व्यक्ति हमेशा सांसारिक कार्य में लगा रहता है
और पशुओं का पालन करता रहता है
व्यापार और खेती आदि करता है
तो उस ब्राम्हण को वश्य कहा जाता है।।
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जो ब्राह्मण वृक्षों की लाख, तेल, कपड़े, रंग, शराब मांस , घी आदि चीजों का व्यापार करता है
उस ब्राह्मण को शुद्र कहते हैं।
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जो दूसरों के कार्य को बिगाड़ता है
अपने ही स्वार्थ सिद्ध करने में लगा रहता है
दूसरों को धोखा देता है
ढोंग करता है और दूसरों से द्वेष रखता है
ऊपर से देखने में अत्यंत नम्र और अंदर से दुष्ट
ऐसे ब्राह्मण को भी पशु कहा गया है।।
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जो ब्राम्हण पानी के स्थानों,
बावड़ी, कुआं, तालाब ,
बाग बगीचों और मंदिरों को तोड़फोड़ करने में किसी प्रकार का भय ना अनुभव करता हो
वो मल के समान होता है।
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आचार्य चाणक्य के अनुसार सज्जन व्यक्तियों का धन सदा दान करने हेतु ही होता है। वह कभी उसका संचय नहीं करते
क्योंकि दान देने की वजह से ही दानवीर कर्ण, महाराजा बलि और विक्रमादित्य का यश आज भी संपूर्ण संसार में फैला हुआ है।