Chanakya niti 10

Chanakya niti  Lesson no.10




 198.

कपड़े से छानकर जल पीना चाहिए।
शास्त्र के अनुसार कोई भी बात करनी नहीं चाहिए और कोई भी कार्य मन से भली प्रकार सोच समझ कर करना चाहिए।
सोच समझकर, सही से देख कर मनुष्य को आगे कदम रखना चाहिए।





 199.
यदि सुख की कामना हो तो विद्या अध्ययन का विचार छोड़ देना चाहिए और यदि विद्यार्थी विद्या सीखने की कामना रखता है तो उसे सुख और आराम छोड़ देना चाहिए ।

क्योंकि सुख चाहन वाले को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है उसे सुख किसी प्रकार नहीं मिल सकता।।





200.
कवी का दर्जा बहुत ऊंचा होता है 
वह ऐसी उपमा देता है जो लोग सोच भी नहीं सकते कवी लोग अपनी कल्पना से सभी कुछ देख सकते हैं।

नशे में चूर व्यक्ति कुछ भी बोल सकता है और स्त्रियां सभी प्रकार की मनमानी कर सकती हैं।

और कौआ सब कुछ खा लेता है कौआ को यह पता नहीं होता कि क्या खाने योग्य है और क्या नहीं।





201.
भाग्य अथवा प्रभु की महिमा अपरंपार है।

उसकी वजह से एक निर्धन यथार्थ भिखारी पल में राजा बन सकता है और राजा को कंगाल होना पड़ता है ।

धनवान व्यक्ति निर्धन बन जाता है और निर्धन के पास धन आ जता  है।।





202.
लोगी व्यक्ति का शत्रु भिखारी अथवा मांगने वाला होता है।
 मूर्खों का शत्रु उन्हें ज्ञान कराने वाला अथवा उपदेश देने वाला होता है ।
व्यभिचारणी स्त्रियों का शत्रु पति होता है और चोरों का शत्रु चंद्रमा होता है।।




203.
कुछ लोग अपना जीवन व्यर्थ ही गवा देते हैं।
जिन लोगों के पास न विद्या है, न तप है,  न कठोर मेहनत करने की आदत है, न दान देने की प्रवृत्ति है, न सदाचार के पालन की भावना है, न ज्ञान है, न दया और न नम्रता।।
 ऐसे व्यक्ति इस संसार में मनुष्य के रूप में पृथ्वी का भार ही होता है । इनका जीवन एक पशु के समान है।



204.
जिस व्यक्ति में किसी प्रकार की योग्यता नहीं है, 
और ना ही उसका हृदय साफ है , 
और उसमें बुरे विचार भरे हैं, 
तो उसे किसी प्रकार का उपदेश देना व्यर्थ है ।
उन्हें उपदेश से किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता है।




205.
जिस व्यक्ति के पास अपनी बुद्धि नहीं , 
शास्त्र उसका क्या कर सकेगा?
जिस प्रकार आपके बिना अंधे के लिए दर्पण का कोई महत्व नहीं होता  ।।



206.
इस विश्व में ऐसा कोई उपाय नहीं जिससे दुर्जन व्यक्ति को सज्जन बनाया जा सके ।
जैसे कुत्ते की पूंछ को कितने ही दिनों तक कांच की नली में दबाकर रखो, वह रहेगी टेढ़ी की टेढ़ी।।





207.
दूसरे से द्वेष रखने से अपना धन नष्ट होता है।
राजा से बैर भाव रखने से मनुष्य अपना नाश करता है।
जो मनुष्य अपने ही आत्मा से द्वेष रखता है उसकी मृत्यु हो जाती है।
और विद्वान, ऋषि-मुनियों और सिद्ध पुरुषों से द्वेष रखने से कुल का नाश हो जाता है।




208.
भले ही मनुष्य वन में निवास करें,
किसी पेड़ पर अपना घर बना ले ,
वृक्ष के पत्तों और फल खाकर गुजारा कर ले,
तिनकों  की सहारा लेकर सो ले,
वृक्ष की छाल के कपड़े पहन ले,
लेकिन अपने भाई बंधुओं में धन से रहित यथार्थ दरिद्र बन कर जीवन न बिताए।





209.
लक्ष्मी जिसकी माता हैं 
सर्व व्यापक परमेश्वर जिसके पिता हैं 
प्रभु के भक्त जिसके भाई बंधु हैं 
ऐसे पुरुष हेतु तीनो लोग अपने ही देश जैसे हैं।




210.
रात होने पर अनेक जातियों के पक्षी एक ही वृक्ष पर आ बैठते हैं
और सुबह होने पर दाना चुगने के लिए अलग-अलग दिशाओं में उड़ जाते हैं।
 इस बारे में शोक कैसा।।





211.
जिसके पास बुद्धि यथार्थ ज्ञान है उसके पास बल भी होता है।
बुद्धिहीन व्यक्ति के पास बल kanha ?
जंगल में अपनी शक्ति के मद में मस्त सिंह को एक खरगोश ने मार डाला । 
इस कथा से सभी परिचित हैं।





212.
संस्कृत के अतिरिक्त में दूसरी भाषाओं का भी लोभी हूं।
 जिस तरह स्वर्ग में विद्यमान देवताओं को अमृत की प्राप्ति के अनुरूप स्वर्ग की अप्सरा ओं के होंठ के रस का पान करने की इच्छा रहती है।




213.
अन्न से 10 गुना अधिक शक्ति उसके आटे में है
आटे से 10 गुना अधिक शक्ति दूध में है 
दूध से 8 गुना अधिक शक्ति मांस में है 
और मांस से 10 गुना अधिक शक्ति की घी में है।





214.
ज्यादा साग खाने से रोगों में वृद्धि होती है ।
दूध से शरीर मोटा होता है ।
घी से वीर्य की वृद्धि होती है 
और मांस से मांस बढ़ता है।।