Chanakya niti
185.
हे बंधु ! यदि तुझे मुक्ति की अभिलाषा है तो बुरे व्यसनों और बुरी आदतों को विश के सामान समेटकर उनका त्याग कर दें ।
और क्षमा, सहनशीलता, धैर्य, शुद्धि और सत्य को अमृत के समान सेवन कर।।
186.
जो नीच मनुष्य अंतरात्मा को दुखाने वाले वचन बोलते हैं ।
वह अवश्य ही ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे बांबी में फस कर सर्प नष्ट हो जाता है।
187.
समस्त औषधियों में अमृत सबसे मुख्य औषधि है।
सुख देने वाले सब साधनों में भोजन सबसे मुख्य है।
मनुष्य की सभी इंद्रियों में आंखें सबसे प्रधान और श्रेष्ठ हैं ।
तथा शरीर के सभी अंगों में मनुष्य का सिर सर्वश्रेष्ठ है।
188.
आकाश में किसी दूत का जाना संभव नहीं और वहां किसी से किसी तरह की बातचीत भी नहीं हो सकती।
लेकिन जिस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने आकाश के सूर्य और चंद्रमा के ग्रहण की बात बताई है उसे विद्वान क्यों न माना जाए ?
189.
विद्यार्थी, सेवक ,
मार्ग में चलने वाला पथिक, यात्री ,
भूख से पीड़ित, डरा हुआ व्यक्ति
और भंडार की रक्षा करने वाला द्वारपाल आदि
अपने कार्य के समय सो रहे हो तो इन्हें तुरंत जगा देना चाहिए।
190.
सांप, राजा ,
बाघ, सूअर ,
बालक, दूसरे के कुत्ते
और मूर्ख व्यक्ति को सोते में जगाना नहीं चाहिए।
191.
जो ब्राह्मण धन की प्राप्ति के विचार से वेदों का अध्ययन करता है और मनुष्यों का अन्न खाते है।
वह विषहीन सांप के समान सारे कार्य में असमर्थ होते हैं।
192
जिसक प्रसन्न होने पर धन प्राप्ति की आशा न हो
जिसके रूष्ट होने पर किसी प्रकार का डर न होता हो जो न दंड दे सकता है और न किसी प्रकार की कृपा कर सकता है।
ऐसे व्यक्तियों से न तो किसी का लाभ होता है और न ही हानि।।
193.
विशहीन सांप को भी अपना फन फैलाना चाहिए अर्थात कभी-कभी आडंबर भी अत्यंत आवश्यक हो सकता है।।
194.
मूर्ख लोग अपना
प्रातः काल का समय जुआ खेलने में
दोपहर का समय स्त्री प्रसंग में
और रात्रि का समय चोरी आदि में व्यर्थ करते हैं।
195
अपने ही हाथ से गुथी हुई माला ,
अपने ही हाथ से घिसा हुआ चंदन ,
अपने ही हाथ से लिखी हुई भगवान की स्तुति करने
से मनुष्य इंद्र की धन संपत्ति को वश में कर सकता है।
196
तेल, स्वर्ण, स्त्री ,
भूमि, चंदन, दही और पान
इन सब का जीतना मर्दन किया जाएगा उतने ही इन के गुण बढ़ते हैं।।
197
धैर्य धारण करने से दरिद्रता कष्ट नहीं देती
स्वच्छ रहने से साधारण वस्त्र भी अच्छा लगता है
ताजा और गर्म - गर्म खाने से सामान्य भोजन स्वादिष्ट लगता है
तथा शील स्वभाव की वजह से कुरूपता बुरी नहीं लगती।।