02. मनुष्य का आचार उसके कुल को दर्शाता है। मनुष्य की बोलचाल से उसके देश अथवा प्रांत का पता चलता है। मन के भाव से उसका प्रेम प्रकट होता है और किसी के शरीर को देखकर उसके भोजन की मात्रा प्रकट होती है।
03. समझदार व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी कन्या का विवाह किसी अच्छे कुल में करें, पुत्र को अच्छी शिक्षा दे।
शत्रु को किसी ऐसे व्यसन में फसाना चाहिए जिससे उसका बाहर निकलना मुश्किल हो और अपने मित्र को धर्म मार्ग में लगाना उचित है।
04. दुष्ट व्यक्ति और सांप इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक रहेगा, क्योंकि सांप समय आने पर ही काट देगा जो कि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पहुंचाता है।
05. राजा लोग अच्छे कुलीन व्यक्तियों को अपने पास सेवक आदी के रूप में इसलिए रखते थे क्योंकि वह राजा का साथ कभी नहीं छोड़ते, ना प्रारंभ में, न मध्य में और न अंत में।
06. प्रलय की स्थिति में समुद्र भी अपनी मर्यादा त्याग कर देते हैं और किनारों को लांघ कर सारे प्रदेश में फैल जाते हैं, लेकिन सज्जन व्यक्ति प्रलय के समान भयंकर आपत्ति और कष्ट आने पर भी अपनी मर्यादा का त्याग नहीं करते।
07. मूर्ख का सदा त्याग कर देना चाहिए क्योंकि वह प्रत्यक्ष रूप से अन्य मनुष्यों के समान होने पर भी दो पैर वाले पशु के समान है।
वह श्रेष्ठ व्यक्ति को उसी प्रकार कष्ट पहुंचाता रहता है जैसे शरीर में चुभा हुआ अदृश्य कांटा शरीर को कष्ट पहुंचाता रहता है।
08. रूप और यौवन से संपन्न ऊंचे कुल में उत्पन्न होने पर भी विद्या से हीन मनुष्य सुगंध रहित ढाक अथवा टेसू के फूल के समान शोभायमान नहीं होते।
09. कोयल का सौंदर्य उसका स्वर है, स्त्रियों का सौंदर्य उनका पतिव्रता धर्म है, कुरूप लोगों का सौंदर्य उनकी विद्या है और और तपस्वी की सौंदर्य उनकी क्षमाशीलता है।
10. यदि एक व्यक्ति का त्याग करने से कुल की रक्षा होती है, उन्नति होती है, सुख शांति मिलती है तो उस एक व्यक्ति को त्याग कर देना चाहिए।
कयदि एक गांव को छोड़ने से पूरे जिले का कल्याण हो तो उस गांव को भी छोड़ देना चाहिए।
इसी प्रकार आत्मा की उन्नति हेतु सारे भूमंडल का भी त्याग कर देना चाहिए।
11. पुरुषार्थ करने वाला व्यक्ति दरिद्र नहीं हो सकता, प्रभु का नाम जपते रहने से मनुष्य पाप में लिप्त नहीं होता, मौन रहने पर कलह नहीं होते तथा जो व्यक्ति जागता रहता है अर्थात सतर्क रहता है उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता।
12. अत्यंत रूपवती होने के कारण ही सीता का अपहरण हुआ,
अत्यधिक गर्व होने के कारण रावण मारा गया, अत्यधिक दान देने के कारण राजा बलि को कष्ट उठाना पड़ा ।
अतः अति सर्वत्र त्याग कर देना चाहिए।
13. समर्थ अथवा शक्तिशाली लोगों हेतु कोई भी कार्य मुश्किल नहीं होता ,
व्यापारियों हेतु कोई भी अस्थान दूर नहीं ,
पढ़े-लिखे विद्वान व्यक्तियों हेतु कोई भी देश विदेश नहीं,
और जो व्यक्ति मधुर भाषी है उसके लिए कोई पराया नहीं।
14. जिस प्रकार सुगंधित फूलों से लदा हुआ एक ही वृक्ष सारे जंगल को सुगंधित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से संपूर्ण कुल की शोभा बढ़ती है, प्रशंसा होती है।
15. जिस प्रकार एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख कुपुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है।
16. जिस प्रकार एक चंद्रमा के उदय होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है, उसी प्रकार एक सुपुत्र के होने से पूरा कुल आनंदित हो जाता है।
पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को सभी प्रकार की खुशी प्राप्त होती है।
17. शोक और संताप देने वाले अनेक पुत्रों को उत्पन्न करने से क्या लाभ ?
कुल को सहारा देने वाला एक ही पुत्र श्रेष्ठ होता है । उसके आश्रय में पूरा कुल सुख भोगता है।
18. 5 वर्ष की आयु तक पुत्र से लाड प्यार करना चाहिए । इसके बाद 10 वर्ष तक उसकी ताड़ना की जा सकती है और उसे दंड दिया जा सकता है परंतु 16 वर्ष की आयु में पहुंचने पर उससे मित्र की भांति व्यवहार करना चाहिए।
19. प्राकृतिक आपत्तियां जैसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि उल्लाकात होना और सूखा पड़ना और महामारी के रूप में रोग फैलने और शत्रु के आगमन करने पर तथा भयंकर अकाल पड़ने पर और नीचे लोगों की संगति होने पर जो व्यक्ति प्रभावित क्षेत्र से पलायन कर जाता है वही जीवित रहता है।
20. मनुष्य जन्म लेने के बावजूद जिसके पास धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि इन चार पुरुषार्थ में से कोई भी पुरुषार्थ नहीं है, तो वह बार-बार मनुष्य योनि में जन्म लेकर सिर्फ मरता ही रहता है, इसके अलावा उसे कोई लाभ प्राप्त नहीं होता।
21. जहां मूर्ख लोगों की पूजा नहीं होती,
जहां अन्न आदि काफी मात्र में इकट्ठे रहते हैं,
जहां पति पत्नी में किसी प्रकार का कलह नहीं,
ऐसे स्थान पर लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करने लगती है।